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हिन्दी कहानी

जिससे श्रीकृष्ण की सहायता पाकर उनकी निर्धनता दूर हो सके, द्वारका पहुँचने पर श्रीकृष्ण ने महल में उनका करुनापूर्ण स्वागत किया.

किन्तु दूसरा सिंह अपने दुर्ग में बैठा हैं, दुर्ग से बाहर आकर उसने हमारा रास्ता रोका था.

तब गडरिये ने कहा – मै बहुत मामूली नौकर हु, इससे अधिक देना मेरे बस की बात नही हैं, लेना हो तो एक बढ़िया ऊंट ले लो.

यह क्रम कई दिन तक चलता रहा, अचानक जैसे ही उमा एक दिन खिड़की से डंडा निकालकर उस घौसले को गिरा रही थी,

उसकी कद्र करे और अपने जीवन में उसका अमल करे.

उसकी सांस् फुल गयी लेकिन उसने हार नही मानी.

उमा की माँ ने कहा मैं तुम्हारी गुडिया को जोडकर तब तक तैयार कर दूंगी जब तक तू बया का घौसला तैयार नही कर देती, यदि तू उसके कार्य में विद्य न डालकर उनकी मदद करती तो बया अब तक अपना घौसला बना देती.

ऐसा करने से जो हो चुका हैं वह अपने आप ठीक नही होने वाला हैं.

कुरज की विनती सुनकर भैसों के ग्वाले के ह्रदय में दया आ गईं, उसने खेत के मालिक से कहा- छांटकर एक बढ़िया सी भैस ले लो, और इस बंधी कुरज को छोड़ दो.

तो वह बोला इन देशो में ज्ञान की कोई कीमत नही हैं, हर कोई पैसे के पीछे पड़ा रहता हैं.

एक दिन उसने ज्वार के पौधे-पौधे पर गुड़ का लेप कर दिया.

और बीते वर्षो की सूनी जिन्दगी की दासता सुनानी लगी, मगर उस युवक का ध्यान तो बिस्तर पर लेटे युवक पर था.

महात्मा जी ने लोहा गर्म देखकर चोट की और उन्हें समझाते हुए कहा- तनिक विचार करो कि जिस भूमि के लिए तुम लोग आपस में लड़ रहे हो,

जब वे सब वहां एकत्रित हुए तो उस समय यह मंत्रीराजा पलंग पर महल के विशाल एवं सज्जित कक्ष में लेटे हुए थे.

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